किसी से कम नहीं हैं निरीह समझे जाने वाले जीव जंतु

जया मंडावरी

मनुष्य अपने विवेक तथा बल बुद्धि के द्वारा जहां प्रत्येक असंभव को संभव बना देता है वहीं निरीह समझे जाने वाले जीव जंतु भी किसी से कम नहीं हैं। इनमें भी ऐसी विलक्षणता पाई जाती है सब दांतांे तले उंगली दबाने को विवश हो जाते हैं।

प्रसिद्ध रूसी लेखक रोमन मोल्कानोव रूस के यूक्रेन प्रांत के निकोयालेत कस्बे में एक तिमंजिली इमारत के निवासी थे। इनकी पालतू बिल्ली ‘भूरी’ भी इनके साथ रहती थी। इसका रंग मटमैला था। भूरी से मोल्कानेव की खूब पटती थी। दोनों ही साथ साथ भोजन करने और घूमने भी जाते थे। कुछ दूर चलने के बाद भूरी, जो मोल्कानोव के कंधे पर सवार रहती थी, अचानक नीचे कूदती। कुछ देर अकेली मटरगश्ती करने चल देती। फिर दूसरे दिन सवेरे घर लौटती। उसकी ‘म्याऊं’ की आवाज सुन मोल्कानोव दरवाजा खोलते, फिर दोनों साथ साथ नाश्ता करते। यह प्रतिदिन होता था।

एक दिन जब भूरी लेखक को रास्ते में अकेला छोड़कर स्वयं कहीं घूमने चली गई तो लेखक ने समझ लिया कि सवेरे भूरी वापस आ ही जाएगी लेकिन जब मोल्कानोव टहलने के बाद अपने कमरे पर आए तो भूरी वहां पहुंच गई थी। आधी रात के समय भूरी ‘म्याऊं, म्याऊं’ बोलने लगी। मोल्कानोव ने बिजली जलाई तो ऐसा लगा कि भूरी बाहर जाने की इच्छुक है। माल्कानोव ने बाहर बारिश होने के कारण दरवाजा नहीं खोला। भूरी के लगातार चिल्लाने पर मोल्कानोव ने दरवाजा खोल दिया लेकिन भूरी बाहर नहीं गई। भूरी की बेचैनी बढ़ती गई, वह कमरे के चक्कर काटने लगी। विवशता में मोल्कानोव पलंग से उठे लेकिन तभी अचानक छत से पलस्तर का भारी टुकड़ा इनके बिस्तर पर गिरा। कृतज्ञता से भूरी की तरफ लेखक ने देखा लेकिन वह तब तक बाहर चली गई थी।

सन् 1917 की अक्टूबर की क्रांति से पहले एक विशेष नस्ल के कुत्ते ‘तेफ’ ने लगभग चौदह सौ नब्बे अपराधियों को पकड़ने में उल्लेखनीय मदद की थी। यह तो कुत्तों की सामान्य विशेषता हुई परंतु कुत्तों द्वारा असली नकली की पहचान भी होती है। मास्को का विश्व प्रसिद्ध कुत्ता ‘दीवा’ अपने आप में विलक्षण प्रतिभा का स्वामी है। असली और नकली दो प्रकार के नोट यदि इसके सामने रखे जाए तो यह असली नोट मंुह में दबा लेता है। इसी प्रकार सोने की धातु की बनी अन्य खरी-खोटी वस्तुओं में से वह असली को तुरंत ही पहचानने की क्षमता रखता है। डबरमन पिशर नस्ल के इस कुत्ते ‘दीवा’ के मालिक लेकसाद तरिया कोवस्की का कहना है कि यह कुत्ता न केवल असली-नकली में पहचान में दक्ष है वरन् लोगों के हाव-भाव को भी कुशलता से समझता है।
बीसवीं शताब्दी में मध्य अमेरिका के वर्जीनिया प्रांत में एक घोड़ी हुई थी जो पराशक्ति संपन्न थी। ‘लेडी वंडर’ नामक इस विलक्षण घोड़ी की इस क्षमता का परिचय श्री एवं श्रीमती फोंडा को तब चला जब तीन वर्ष की उम्र में एक ऐसे बक्से की तरफ इशारा करने लगी जो काफी खोजने पर भी नहीं मिल सका था।
अगली बार इस घोड़ी ने गुमशुदा बच्चे का पता दिया। ‘लेडी वंडर’ की पराशक्ति का लाभ लेने के लिए एक विशेष तरीका प्रयोग में लाया जाने लगा। घोड़ी के सामने अंग्रेजी व शून्य से नौ तक के सारे अंकों की तख्तियां लटका दी जाती। यह घोड़ी वहीं अंक या अक्षर उठाती जो आवश्यक होता था। ऐसे एक एक अक्षर मिल कर जो शब्द बनता था वह प्रश्नकर्ता का उत्तर होता था।

एक बार क्लार्क नाम व्यक्ति डेनवर से हाउस्टन की यात्रा कर रहा था कि उसका वह ब्रीफकेस खो गया जिसमें काम के पत्रा थे। हवाई अड्डे के अधिकारियों ने काफी खोज बीन के बाद क्लार्क को बताया कि वे मुआवजा देने को तैयार हैं। ‘लेडी वंडर’ की इस बारे में सहायता ली गई तो जवाब मिला कि सामान न्यूयार्क हवाई अड्डे पर है। आखिर वहीं पर सामान मिला तो क्लार्क को इसकी सूचना भेजी गई। वह पत्रा प्रमाण के रूप में आज भी क्लार्क के परिवार वालों के पास सुरक्षित है।

इस घोड़ी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि किसी भी खोई जा चुकी वस्तु को बिना किसी सूत्रा या सबूत के यह बता देती थी। इसकी दूसरी बड़ी उपलब्धि यह थी कि वह अंग्रेजी का एक एक शब्द, वाक्य तथा सही सही वर्तनी (स्पेलिंग) तक जानती थी। यह घोड़ी सात वर्ष की आयु तक आते आते पूरे अमेरिका में विख्यात हो चुकी थी। पंद्रह वर्षों तक अपनी इस पराशक्ति का वह प्रदर्शन करती रही। बाइस वर्ष की आयु में ‘लेडी वंडर’ की मृत्यु हो गई।

India Edge News Desk

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